Article written by – Priya (Gurukul99 Hindi Essay Competition 19 May 2022)
प्रस्तावना
करीब 73 साल पहले नवंबर के समय दिल्ली के संसद भवन में हर नागरिक के लिए एक समान कानून यानी Uniform Civil code को लेकर विचार विमर्श किया जा रहा था। दरअसल इस मुद्दे को लेकर चर्चा ये थी कि यूसीसी को संविधान में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं और ये दिन था 23 नवंबर 1948। वही देखा जाए तो अंत तक इस पर कोई नतीजा नहीं निकल सका। बता दें कि इस बात को करीबन 74 साल हो चुके हैं। कहा जाता है-
“जो राजा अपनी प्रजा को समान की दृष्टि से देखता है वही उसके उत्थान के विषय में कार्य कर सकता है।”
Uniform Civil code का अर्थ है कि भारत में रहने वाले जितने भी नागरिक हैं उन सभी के लिए एक समान कानून होगा। फिर चाहे वो किसी भी धर्म या जाति के हों। यही नहीं समान नागरिक संहिता में जमीन- जायदाद, शादी और तलाक से जुड़े मामलों को लेकर सभी धर्मों के लिए एक ही कानून बनाया जाएगा। इसका सीधा सा अर्थ है कि एक समान और निष्पक्ष कानून हो, जिसका किसी भी धर्म या जाति से किसी तरह का ताल्लुक ना हो।
दरअसल अगर संविधान की बात करें तो अनुच्छेद 35 को अंगीकृत संविधान के अनुच्छेद 44 के रूप में शामिल किया गया। इसी के साथ ही उम्मीद थी कि गई कि जब राष्ट्र एक मत हो उसी समय समान नागरिक संहिता को अस्तित्व में लाया जाएगा। ये अनुच्छेद 44 राज्य को सही समय आने पर सभी धर्मों के लिए एक समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश देता है। एक तरह से अनुच्छेद 44 का ये उद्देश्य है कि जो कमजोर वर्गों से भेदभाव की समस्या है, उसे खत्म करके देशभर में अलग-अलग सांस्कृतिक समूह के बीच में तालमेल बढ़े।
इसी के साथ ये भी जानना जरूरी है कि आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत क्या है? दरअसल, दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं है जिसमें धर्म या जाति के आधार पर अलग-अलग कानून है। परंतु भारत ऐसा देश है जहां अलग-अलग धर्मों के लिए मैरिज एक्ट है। यही कारण है कि शादी और जनसंख्या समेत कई तरह ऐसे मामले हैं जिनका ताना-बाना काफी अलग सा दिखाई देता है। इसीलिए एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर देश को सामाजिक तौर पर उन्नति की ओर अग्रसर करना है तो यूनिफॉर्म सिविल कोड की अत्यधिक आवश्यकता होगी। इससे ना सिर्फ लोगों में समानता और एकता का भाव आएगा बल्कि सामाजिक ताना-बाना भी सुधरेगा।

यही नहीं इस यूनिफॉर्म सिविल कोड के माध्यम से जितने भी धर्म, जाति, वर्ग या संप्रदाय हैं वो सभी एक सिस्टम में लाए जा सकेंगे। जाहिर है, काफी समय से अलग-अलग धर्मों के अलग कानून के कारण न्यायपालिका पर भी काफी बोझ पढ़ता रहा है। एक जैसे कानून के चलते इन सभी परेशानियों से निजात मिल सकेगी और अदालतों में भी जो फैसले लंबित पड़े हैं वो जल्द ही निपटाए जा सकेंगे। इसमें शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे को लेकर एक ऐसा कानून बनाया जाएगा जो कि सबके लिए समान होगा, फिर चाहे वो किसी भी धर्म का हो।
वैसे तो यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के लिए कई बातें और दलीले दी जाती है लेकिन जो एक सबसे बड़ा कारण है वो यही है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के साथ ही महिलाओं की स्थिति में सुधार आएगा। दरअसल, कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकारों को काफी हद तक सीमित ही रखा गया है। सिर्फ यही नहीं महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने को लेकर जो मामले हैं, उन सभी को लेकर एक समान नियम लागू किए जाएंगे।
दुनिया में ऐसे कई देश है जहां पर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया जा चुका है। यही नहीं कई देशों में सदियों से इसका पालन भी किया जा रहा है। इन्हीं में से हैं- अमेरिका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, आयरलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, तुर्की, सूडान, इजिप्ट आदि। ये सभी वो देश है जहां पर समान नागरिक संहिता लागू हो चुकी है और लोग इस कानून का पालन करते हैं।
वहीं कई लोग यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करते भी नजर आते हैं जिसके पीछे उनके अपने ही तर्क हैं:
▪️दरअसल भारत का संविधान का अनुच्छेद 25 जो कि किसी भी धर्म को मानने तथा उसका प्रचार करने की पूर्ण स्वतंत्रता संरक्षित करता है। साथ ही भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 भी निहित समानता की जो अवधारणा है उसके विरुद्ध है।
▪️यही नहीं यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध करने वालों का एक तर्क ये भी है कि ये सभी धर्मों पर एक तरह से हिंदू कानून लागू करने जैसा है जो कि गलत है।
▪️एक तर्क ये भी दिया जाता है कि एक सेक्युलर देश में पर्सनल लॉ में दखलंदाजी करना गलत है। यही कारण है कि समान नागरिक संहिता लागू होने पर धार्मिक स्वतंत्रता को खतरा हो सकता है।
उपसंहार:
आज के समय में यूनिफॉर्म सिविल कोड एक जरूरत बन गया है। कारण यही है कि इससे सभी पर एक सा ही कानून लागू होगा। वही जाहिर है कि आने वाले समय में कई ऐसी चुनौतियां आएंगी जिन्हें लेकर सवाल खड़े हो सकते हैं लेकिन सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून होना ना सिर्फ उन्हें सामर्थ्य बल्कि समान अधिकार भी दिलाएगा।
वही जो लोग इसके विरोध में हैं उनकी भी चिंताओं का निवारण होना चाहिए। एक तरह से देखा जाए तो सरकार को सभी पक्षों को ध्यान में रखकर इस कानून को कैसे लागू किया जा सकता है, इस पर विचार- विमर्श करना चाहिए।