दरअसल हमारी हिंदी भाषा की वर्णमाला में कुल 52 वर्ण होते हैं और इसे दो भागों में बांटा गया है। अपको बता दें कि इसमें पहले को स्वर और दुसरे को व्यंजन कहा जाता है। ये विस्तार से जानना भी जरूरी है कि आखिर इनका क्या मतलब होता है और इन्हें क्यों हिन्दी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण अंग भी माना जाता है। तो आईए वर्णमाला के दूसरे भाग यानी कि व्यंजन के बारे (Vyanjan in Hindi) के बारे में हम इस लेख में विस्तार पूर्वक जानते हैं।
विषय सूची
व्यंजन क्या है? उनके प्रकार ( Vyanjan and it’s Type )
वे वर्ण जिनका उच्चारण स्वर की सहायता के बिना सम्भव नही है अर्थात जिनको स्वर की सहायता से बोला जाता है, उन्हें व्यंजन कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में 33 व्यंजन होते हैं।
व्यंजनों का वर्गीकरण, व्यंजन के प्रकार अलग-अलग प्रकार के आधार पर विभाजित किये गए हैं। व्यंजनों के विभाजन, व्यंजनों के वर्गीकरण के कुल 6 आधार निम्नलिखित हैं।
मूल विभाजन या अभ्यांतर प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
(i) स्पर्श व्यंजन या वर्गीय व्यंजन
(ii) अन्तस्थ व्यंजन
(iii) ऊष्म व्यंजन
(iv) संयुक्त व्यंजन
प्राणवायु के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
(i) अल्पप्राण
(ii) महाप्राण
स्वर तंत्रियों के कंपन / घोष के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
(i) घोष या सघोष
(ii) अघोष
उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
(1) मूल विभाजन या अभ्यांतर प्रयत्न के आधार पर व्यंजनों के प्रकार-
ये विभाजन सबसे पहला एवं सबसे प्राचीन है। मूल विभाजन के आधार पर व्यंजनों को 4 भागों में बांटा गया है।
इस प्रकार व्यंजन मूलतः 4 प्रकार के होते हैं।
(i) स्पर्श व्यंजन या वर्गीय व्यंजन
वे व्यंजन जिनका उच्चारण करने पर जीभ मूल उच्चारण स्थानों (कंठ, तालु, मूर्धा, दंत, ओष्ठ) को स्पर्श करती है इसलिए ये स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं।
इन व्यंजनों के शुरू के 5 वर्ग होते है इसी कारण इन्हें वर्गीय व्यंजन भी कहा जाता है।
ये व्यंजन जीभ के अलग अलग उच्चारण स्थानों के टकराने से उत्पन्न हुए हैं, इसीलिए इन्हें उदित व्यंजन भी कहा गया है।
इनकी संख्या 25 होती है।
वर्ग व्यंजन
क वर्ग क,ख, ग, घ, ङ
च वर्ग च,छ, ज,झ,ञ
ट वर्ग ट,ठ, ड, ढ, ण
त वर्ग त,थ,द, ध, न
प वर्ग प,फ, ब,भ,म
(ii) अन्त:स्थ व्यंजन
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ, मुँह के किसी भी भाग को पूरी तरह स्पर्श नही करती अर्थात इनका उच्चारण मुह के भीतर से होता है, अंत:स्थ व्यंजन कहलाते हैं।
अंत: का अर्थ ही होता है – भीतर या अंदर ।
इनकी संख्या 4 है – य,र,ल,व ।
(iii) ऊष्म व्यंजन
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय गर्मी उत्पन्न हो अर्थात इनके उच्चारण में मुख से हवा के रगड़ खाने के कारण ऊष्मा पैदा हो, ऊष्म व्यंजन कहलाते है।
ऊष्मा का अर्थ होता है – गर्मी या गर्माहट।
इनकी संख्या 4 है – श,ष,स,ह ।
(iv) संयुक्त व्यंजन
जो व्यंजन दो व्यंजनों के मेल से बनते हैं, वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं।
इनकी संख्या 4 होती है – क्ष,त्र,ज्ञ,श्र ।
क्ष = क् + ष = रक्षा
त्र = त् + र = पत्र
ज्ञ = ज् + ञ = ज्ञान
श्र = श् + र = श्रम
प्राण वायु के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
व्यंजनों को प्राण वायु के आधार पर भी बांटा गया है।
इसके अनुसार व्यंजन दो प्रकार के होते हैं :–
(i) महाप्राण
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय प्राण वायु अधिक निकले या अधिक प्रयोग हो, महाप्राण कहलाते हैं। इनकी संख्या 14 है।
5 वर्गों के सम स्थान वाले वर्ण (10) + उष्म व्यंजन (4)
अर्थात- ख,घ,छ,झ,ठ,ढ,थ,ध,फ,भ,श,ष,स,ह ।
विशेष- सभी उष्म व्यंजन और वर्ग के दूसरे चौथे स्थान के वर्ण ही महाप्राण वर्ण है।
(ii) अल्पप्राण
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय प्राण वायु महाप्राण की तुलना में कम निकले या कम प्रयोग हो, वे अल्पप्राण कहलाते हैं। इनकी संख्या 19 होती है।
5 वर्गों के विषम स्थान वाले वर्ण (15) + अंत:स्थ व्यंजन (4)
अर्थात- क,ग,ङ,च,ज,ञ,ट,ड,ण,त,द,न,प,ब,म,य,र,ल,व ।
विशेष- सभी अंत:स्थ व्यंजन और वर्ग के पहले, तीसरे,vपांचवे स्थान के वर्ण ही अल्पप्राण वर्ण है।
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स्वर तंत्रियों के कंपन / घोष के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
घोष के आधार पर व्यंजनों के प्रकार, स्वर तंत्रियों के कंपन के आधार पर व्यंजनों को दो भागो में बाँटा गया है।
(i) घोष या सघोष व्यंजन
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय स्वर तंत्रियों में अधिक कंपन हो, घोष या सघोष वर्ण कहलाते हैं। ये संख्या में 20 होते हैं।
वर्गों के 3,4,5 वर्ण (15) + अंत:स्थ व्यंजन(4) + ह
ख,ग,ङ,ज,झ,ञ,ड,ढ,ण,द,ध,न,ब,भ,म,य,र,ल,व,ह
विशेष– सभी अंत:स्थ व्यंजन, ह वर्ण और वर्गों के तीसरे, चौथे, पांचवे वर्ण घोष वर्ण के अंतर्गत आते हैं।
(ii) अघोष व्यंजन
इन व्यंजनों का उच्चारण करते समय स्वर तंत्रियों में घोष वर्णों की तुलना में कम कंपन होता है, अघोष वर्ण कहलाते हैं। इनकी संख्या 14 होती है।
वर्गों के 1,2 वर्ण (10) + श,ष,स
क,ख,च,छ,ट,ठ,त,थ,प,फ,ष,श,स
विशेष– श,ष,स वर्ण और वर्गों के पहले, दूसरे वर्ण अघोष वर्ण के अंतर्गत आते हैं।
कुछ व्यंजन एवं उनके अन्य नाम
(1) स्पर्श संघर्षी व्यंजन – च,छ,ज,झ ।
(2) संघर्षी व्यंजन – फ़,व,स,श,ह ।
(3) नासिक्य व्यंजन – ङ,न,ण,म,ञ ।
(4) निरानुनासिक व्यंजन – च,क,ट,थ ।
(5) लुंठित व्यंजन – र
(6) पार्श्विक व्यंजन – ल
(7) स्वर यंत्रमुखी या काकल्य व्यंजन – र
(8) अर्ध स्वर – य,व ।
(9) द्विगुण व्यंजन / उक्षिप्त व्यंजन – ढ़,ड़ ।
द्विगुण व्यंजन या नव विकसित व्यंजन
ऐसे व्यंजन जिनके उच्चारण में जीभ कहीं और टकराये और फिर कहीं और टकरा जाए, ऐसे व्यंजन द्विगुण कहलाते हैं।
इन्हें नव विकसित इसीलिए कहा जाता है क्योंकि ये वर्ण संस्कृत में नही है ये केवल हिंदी में नए आये है इसीलिये इन्हें नव विकसित कहा जाता है।
ड़ और ढ़ द्विगुण व्यंजन होते हैं।
ये व्यंजन शब्दों के बीच या अंत में प्रयोग होते हैं। इन व्यंजनों से कभी कोई शब्द शुरू नहीं होता है।
जैसे – कूड़ा, सड़ना, पढ़ना, बूढ़ा आदि।
द्वित्व व्यंजन-
जो व्यंजन दो समान व्यंजनों के संयोग से बनते हैं,वे द्वित्व व्यंजन कहलाते हैं।
जैसे – शक्कर, चक्कर, बिल्ली, दिल्ली आदि।
आगत व्यंजन
कुछ व्यंजन बाहर से आये हैं जो हिंदी भाषा में स्वीकार कर लिए गए हैं परन्तु ये हिंदी भाषा के नहीं है।
आगत व्यंजन हैं – ज़,फ़ आदि।
उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों के प्रकार
उच्चारण स्थान व्यंजन
कंठ क वर्ग,ह
तालु च वर्ग ,य,श
मूर्धा ट वर्ग ,र,ष
दंत त वर्ग ,ल,स
ओष्ठ प वर्ग,
दंत + ओष्ठ व
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