भारत में धार्मिक दृष्टि से युगों के कालचक्र को बेहद अहम भूमिका दी जाती है। भारत की इस युग प्रणाली को कुल चार वर्गों में विभाजित किया है – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, कलियुग।
सनातन धर्म में भी इन्हीं चार युगों का उल्लेख किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं युग प्रणाली से जुड़ी संपूर्ण जानकारी? आज हम अपने इस लेख के माध्यम से इन चारों युगों के प्रारंभ व अन्य महत्वपूर्ण जानकारी का उल्लेख करने वाले हैं।
युगों की इस प्रणाली को समझने से पहले आपको यह जानना आवश्यक है कि युग का क्या अर्थ है?
युग का अर्थ होता है, निर्धारित संख्या की काल अवधि। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भी युग का अर्थ एक निश्चित समयावधि से लगाया जाता है।
काल के अंग विशेष के रूप में युग का शब्द का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार युग शब्द का अभिप्राय स्पष्ट है।
धार्मिक दृष्टिकोण से युगों की यह प्रक्रिया बेहद प्राचीन व पौराणिक है। चार युगों की प्रणाली की भारतीय युग प्रणाली की शुरुआत सर्वप्रथम सतयुग से शुरू हुई थी।
जिसे देवताओं कस युग भी कहा जाता है। आइए सबसे पहले युग प्रणाली का प्रथम युग सतयुग के विषय में जानते हैं।
विषय सूची
सतयुग
सतयुग को एक ऐसा युग कहा जाता है जिसमें पाप की संख्या बेहद कम और पुण्य की संख्या सबसे ज्यादा रहती थी।
सतयुग के शब्द से यह स्पष्ट है कि यह युग सत्य, जप, तप और दान से संबंधित है। इस उम्र में व्यक्तियों की संख्या काफी लंबी होती थी। इसके साथ ही लोगों में ज्ञान, दान और यज्ञ आदि करने का बेहद उत्साह बना रहता था।
सतयुग में भगवान विष्णु के कई अवतार हुए, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं – मत्स्य अवतार, वाराह अवतार, कूर्म अवतार, नरसिंह अवतार शामिल हैं।
सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने सतयुग में यह अवतार शंखासुर का वध हेतु, वेदों के उत्थान हेतु, पृथ्वी का भार हल करने के लिए थे।
राजा हिरण कश्यप और प्रहलाद और नरसिंह अवतार की कहानी सतयुग काल की ही है। वहीं श्री राम के वंशज राजा हरिश्चंद्र की कहानी भी सतयुग की है।
सतयुग से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें-
• सतयुग में मनुष्य की आयु 100000 होती थी।
• सतयुग में मनुष्य की लंबाई की काफी अधिक होती थी। ऐसे में प्रत्येक मनुष्य 32 फिट का होता था। इसके साथ ही लगभग 21 फीट के हाथ हुआ करते थे।
• सतयुग में तीर्थ स्थान पुष्कर था।
• सतयुग में पाप की संख्या 0 थी। यहां पाप नहीं होता था।
• सतयुग में पुण्य की संख्या 20 विश्वा थी।
• सतयुग में भगवान विष्णु ने अमानवीय अवतार लिए थे जो कि इस प्रकार थे – कूर्म, वाराह, नृसिंह
• भगवान विष्णु का अवतार लेने का कारण शंखासुर का वध एंव वेदों का उद्धार, पृथ्वी का भार हरण, हरिण्याक्ष दैत्य का वध, हिरण्यकश्यपु का वध एवं प्रह्लाद को सुख था।
• सतयुग में मुद्रा रत्न में चलती थी।
• सतयुग में पात्र स्वर्ण के प्रयोग किए जाते थे।
त्रेतायुग
धार्मिक मान्यताओं के आधार पर युगों की 4 संख्याओं में त्रेतायुग दूसरे नंबर का युग है। मानव काल का द्वितीय युग कहा जाने वाले इस युग में श्री विष्णु जी के अवतार प्रकट हुए थे।
विष्णु जी के यह तीन अवतार परशुराम, वामन और राम थे। यह माना जाता है कि इस युग में ऋषभ रूपी धर्म तीन पैरों पर खड़े होते हैं।
इससे पूर्व सतयुग में यह चार पैरों पर खड़े थे। राम जी के अंतरलीन हो जाने के बाद इस युग का अंत हुआ था। त्रेता युग में एक दिवस 10000 भागों में बटा होता था जिसको चरण कहते थे।
त्रेता युग से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें-
• त्रेता युग लगभग 12,16,000 सालों तक जीवित रहा था।
• त्रेता युग में मनुष्य 10000 साल तक जिया करते थे।
• त्रेता युग में मनुष्य की लंबाई कम होती चली गई। इस प्रकार इस युग में मनुष्य 21 फीट का रह गया और 14 फीट के हाथ रहा करते थे।
• त्रेता युग में मनुष्य के लिए तीर्थ स्थल नैमिषारण्य हुआ करता था।
• त्रेता युग में पापों की संख्या 20 में से पांच हुआ करती थी।
• त्रेता युग में पुण्य की संख्या 20 में से 15 हुआ करती थी।
• त्रेता युग में भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के घर 3 अवतार लिए थे – वामनमन, परशुराम, राम
• भगवान विष्णु ने यह तीन अवतार निम्नलिखित उद्देश्य से किए थे- बलि का उद्धार कर पाताल भेजने, मदान्ध क्षत्रियों का संहार, रावण-वध एवं देवों को बन्धनमुक्त करने के लिए।
• त्रेता युग में मुद्रा स्वर्ण की चला करती थी।
• त्रेता युग में पात्रों का प्रयोग चांदी की धातु का होता था।
द्वापर युग
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मानव काल का द्वितीय युग द्वापर युग था। इस युग में विष्णु जी ने श्री कृष्ण का अवतार धारण किया था।
इसके साथ ही द्वापर युग का अंत श्री कृष्ण के अंतरलीन हो जाने के बाद हो गया था। इसके बाद मानव काल के वर्तमान युग कलयुग ने जन्म लिया।
द्वापर युग से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें-
• द्वापर युग कुल लगभग 867000 वर्षों तक जीवित रहा था।
• द्वापर युग के समस्त मनुष्य 1000 साल तक जीवित रहा करते थे।
• द्वापर युग में जन्मे मनुष्य की लंबाई 14 फिट और हाथ 7 फीट के रह गए थे।
• द्वापर युग की मनुष्य के लिए तीर्थ स्थल कुरुक्षेत्र हुआ करता था।
• द्वापर युग में पाप और पुण्य का आधी आधी संख्या में बढ़ चुके थे। इसमें पुण्य की संख्या 10 हो गई थी और पाप की संख्या 10 हो गई थी।
• द्वापर युग में भगवान विष्णु ने कृष्ण और बलराम का अवतार लिया। भगवान कृष्ण ने माता देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में जन्म लिया था और इनका पालन पोषण यशोदा का नंदलाल के घर हुआ था।
• द्वापर युग में श्री कृष्ण का अवतार लेने का कारण कंस व अन्य दुष्टो का संहार एंव गोपयों की भलाई, दैत्यो को मोहित करने के लिए हुआ था।
• द्वापर युग में चांदी की मुद्राओं का प्रयोग किया जाता था।
• द्वापर युग में ताम्र धातु के पात्रों का प्रयोग होता था।
कलियुग
हिंदू काल गणना के अनुसार भारतीय युग प्रणाली के चार युगों में कलयुग चौथा तथा अंतिम युग है। पुराणों के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि अवतार धारण करेंगे जिसके साथ कलयुग का अंत होगा।
कलयुग से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें-
• कलयुग के युग को लगभग 4,32,000 साल का माना जाता है।
• कलयुग में मनुष्य की आयु 100 वर्ष तक ही सीमित हो जाती है।
• कलयुग की युग में मनुष्य की लंबाई काफी हद तक घट गई है, इस युग भी मनुष्य की लंबाई 5.5 फीट की रहती है और उसके हाथ 3.5 रहते हैं।
• कलयुग में मनुष्य के लिए तीर्थ स्थल गंगा है।
• कलयुग में पापों की संख्या सर्वाधिक रहती है। जिसमें पुण्य की संख्या 5 रह गई है और पाप की संख्या 20 में से 15 रह गई है।
• पुराणों के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु एक ब्राह्मण के घर जन्म लेकर कल्कि अवतार धारण करेंगे
• कलयुग में श्री विष्णु का यह अवतार मनुष्य के उद्धार हेतु, धर्म की रक्षा करने हेतु, पापों का सर्वनाश करने हेतु होगा।
• कलयुग में लोहे के धातु की मुद्रा चलेगी।
• कलयुग में मिट्टी के पात्र का प्रयोग होगा।
इस प्रकार युगों की यह प्रणाली का अंतिम पड़ाव में हम मौजूद है। पौराणिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वर्तमान में कलयुग समय चल रहा है, कलयुग के निश्चित वर्ष पूरे होने के बाद सृष्टि का पुनः निर्माण होगा। जिसमें पुनः सतयुग से लेकर कलयुग तक का कालचक्र शुरू हो जाएगा।
आशा करते है आपको यह ज्ञानवर्धक जानकारी अवश्य पसंद आई होगी। ऐसी ही अन्य धार्मिक और सनातन संस्कृति से जुड़ी पौराणिक कथाएं पढ़ने के लिए हमें फॉलो करना ना भूलें।
Featured image: sadhguru
