तुम मुझे खून दो,
मैं तुम्हें आजादी दूंगा!
उपरोक्त उद्घोष से भारतीयों के दिलों में आजादी का बिगुल बजाने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत आज तक स्पष्ट नहीं हो सकी है, कि उनकी मृत्यु दुर्घटना थी या साजिश?
हालांकि भारतीय इतिहास में कई सारी ऐसी बातें या घटनाओं का जिक्र किया गया है, जोकि नेताजी की मौत को लेकर कई प्रकार की पुष्टि करती है, लेकिन उसमें कितनी सच्चाई है, इसको लेकर कई प्रकार के मतभेद भी देखने को मिलते हैं।
हमारे आज के इस लेख में हम आपको नेताजी की मृत्यु का असली सच बताएंगे, जिसे भारतीय इतिहासकारों ने आम जनमानस से सदैव छुपाया है।
तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों इतनी रहस्यमयी तरीके से हुई थी नेताजी की मौत?
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत दुर्घटना या साजिश?
इतिहासकारों के मुताबिक, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत 18 अगस्त 1947 को विमान दुर्घटना के चलते हुई थी। जिसे ही सुभाष चन्द्र बोस का आखिरी सफर कहा जाता है।
ये कहानी तब शुरू होती है जब दुनिया दूसरे विश्व युद्ध से जूझ रही होती है।इसी दौरान जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु हमले हुए थे।
लेकिन सुभाष चन्द्र बोस भारतीयों की आजादी के लिए डटे रहे और वैश्विक मदद के लिए मंचूरिया के लिए रवाना हुए थे।
तभी उनका विमान दुर्घटना ग्रस्त हो गया, इसी में नेताजी की मृत्यु हो गई। इस दृष्टांत का चश्मदीद गवाह आबिद हसन को कहा जाता है, जिसने ही विमान दुर्घटना के समय नेताजी की मदद की थी।
हालांकि इस विमान दुर्घटना की पुष्टि करने के लिए भारत सरकार द्वारा तीन बार आयोग का भी गठन किया गया, लेकिन तीन में से केवल दो कमेटी सदस्यों ने इस बात को सही ठहराया, जबकि तीसरे आयोग के अनुसार, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अपनी मौत का स्वांग स्वयं रचा था।
हालांकि इस तथ्य को भी सत्य साबित करने के लिए किसी के पास साक्ष्य मौजूद नहीं थे। ऐसे में पूर्णतया इस बात पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता है।
लेकिन कई लोग नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत को आज भी साजिश मानते हैं। जिन तथ्यों पर आगे हम विस्तार से चर्चा करेंगे।
नेताजी की मृत्यु का कारण – विमान दुर्घटना
कई इतिहासकारों का मानना है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस 18 अगस्त को जब हवाई यात्रा से मंचूरिया जा रहे थे, तभी उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
जबकि जापान की एक जानी मानी संस्था का कहना है कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस साल 1945 में ताइवान में हवाई यात्रा कर रहे थे, तभी उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
इस संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का विमान अव्यवस्थित हो गया था, जोकि धरती पर गिरते ही आग की लपटों से घिर गया।
इसी दौरान सुभाष चन्द्र बोस भी आग की चपेट में आ गए। इस रिपोर्ट में सुभाष चन्द्र बोस के कपड़ों के जलने और उनको सैनिक अस्पताल में भर्ती कराने की बात भी कही गई है।
जहां मौत की पुष्टि होने के बाद नेताजी का ताइपेई निगम शमशान में अंतिम संस्कार कराया गया। बताते हैं कि उस दौरान नेताजी की आयु 45 वर्ष थी। हालांकि जापान की सरकार इस बात का पूर्ण रूप से खण्डन करती है।
ऐसे में सबके मन मस्तिष्क में सदैव से यही प्रश्न बना हुआ है कि आखिर नेताजी की मृत्यु का सच क्या है? और क्यों उनकी मौत रहस्यमयी बनी हुई है।
नेताजी की मौत पर संशय इसलिए भी बना हुआ है क्योंकि उनकी मौत की खबर के बाद भी प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने बोस परिवार की जासूसी कराई थी, जिसका कारण यह था कि नेहरू जी भी सुभाष चंद्र बोस की मौत को सच नहीं मानते थे।
उनका मानना था कि अगर नेताजी जिंदा है तो वह अवश्य ही अपने परिवार से संपर्क करेंगे।
नेहरू जी ने बोस परिवार की जासूसी बोस परिवार को मिलने वाले पत्रों से कराई थी, इस बात का खुलासा साल 2015 में इंटेलिजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट से हुआ था।
जिसने इस संबंध में दो फाइलें देशवासियों के सामने लाकर रख दी थी।
इतना ही नहीं, एक बार जब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत का कारण जानने के लिए सायक सैन नाम के व्यक्ति ने आरटीआई दाखिल की थी।
तब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत का कारण विमान हादसा था, इस बात के पक्ष में भारत सरकार द्वारा 37 फाइलें सार्वजनिक की गई थी।
जिसके विरोध में सुभाष चन्द्र बोस के पोते चंद्र कुमार बोस ने भारत सरकार के गृह मंत्रालय से माफी मांगने और ताइवान में मिली नेताजी की अस्थियों का डीएनए कराने को कहा था।
साथ ही बंगाल की जनता यह मानती है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत विमान हादसे में नहीं हुई और देश की आजादी के वक्त वह जीवित थे।
इसके चलते विमान हादसे वाली बात नेताजी की मौत को और अधिक रहस्यपूर्ण बना देती है।
नेताजी की मौत नहीं था कोई विमान हादसा – फ्रांस रिपोर्ट
नेताजी की मृत्यु का पूर्णतया विरोध करती फ्रांस की एक रिपोर्ट बताती है कि नेताजी दिसंबर 1947 तक जिंदा थे।
इस बात की पुष्टि फ्रेंच इतिहासकार जे बी पी मोरे की एक रिपोर्ट करती है, जिनके अनुसार, 11 दिसंबर 1947 तक नेताजी सुभाषचंद्र बोस जिंदा थे, लेकिन वह कहां थे, इसकी जानकारी नहीं है।
इस फ्रेंच रिपोर्ट के मुताबिक, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारत चीन की सीमा से बाहर निकलने में कामयाब रहे थे, लेकिन उसके बाद वे कहां गए, इसकी जानकारी किसी को नहीं है।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत से जुड़ी महत्वपूर्ण रिपोर्ट और तथ्य
1956: शाहनवाज कमेटी ने की थी विमान दुर्घटना में नेताजी के मारे जाने की घोषणा। ये रिपोर्ट जापान के ताइवान हादसे का समर्थन करती है।
1970: पंजाब हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस जी डी खोसला की रिपोर्ट में हुई विमान दुर्घटना के हादसे की पुष्टि
1999: मुखर्जी कमीशन ने भी की थी विमान हादसे की पुष्टि।
कई इतिहासकार इस बात को तथ्य मानते हैं कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में नहीं बल्कि सोवियत रूस में हुए एक विमान हादसे में हुई थी।
जबकि कई लोग अयोध्या के एक गुमनामी बाबा को सुभाष चन्द्र बोस मानते हैं। जिनके पास नेताजी की तस्वीरें, रोलेक्स की घड़ी, हिंद फ़ौज की वर्दी आदि मिली थी।
इतना ही नहीं, कई लोग शॉलमारी आश्रम के बाबा को भी नेताजी मानते थे।
नेताजी के ड्राइवर निजामुद्दीन के मुताबिक भी नेताजी की मौत विमान दुर्घटना से नहीं हुई थी।
उनका कहना है कि नेताजी की मौत की खबर फैलने से दो चार महीने बाद वह खुद नेताजी को थाईलैंड के बॉर्डर पर छोड़ने गए थे।
ऐसे में अलीगढ़ के निवासी निजामुद्दीन अपने पूरे जीवनकाल में नेताजी की मौत को एक साजिश कहते रहे और विमान दुर्घटना की बात को नकारते रहे।
2015: इस वर्ष प्रधानमंत्री मोदी जी ने नेताजी की मौत से जुड़ी 100 फाइलों को डिजिटल माध्यमों से सार्वजनिक कर दिया गया था, लेकिन माना जाता है कि इससे जुड़ी 39 फाइलों को आज भी गोपनीय रखा गया है, इसी में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु का रहस्य छुपा हुआ है।
ऐसे में नेताजी की मौत के रहस्य के साथ ही इन प्रश्नों का उत्तर भी रहस्यमयी बना हुआ है… जैसे ताईपेई में हुए नेताजी के अंतिम संस्कार को कहीं दर्ज क्यों नहीं किया गया?
अगर विमान हादसे में नेताजी मर गए थे तो निजामुद्दीन ने थाईलैंड बॉर्डर पर किसे छोड़ा? क्यों गुमनामी बाबा, देहरादून के एक संत के पास नेताजी का सामान मिला आदि।
इस प्रकार, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के जीवन की तरह उनकी मौत भी आज तक रहस्यों से भरी हुई है।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जिन्होंने भारतीयों को ब्रिटिश गुलामी से आजाद कराने के लिए अपना संपूर्ण जीवन बलिदान कर दिया।
इतना ही नहीं, जब बात देश की आजादी की आई तो वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अकेले ही हिल्टर तक से मिलने चले गए।
ऐसे में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आज हमारे मध्य नहीं है लेकिन उनके विचार सदा आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करेंगे।
आशा करते है आपको यह ज्ञानवर्धक जानकारी अवश्य पसंद आई होगी। ऐसी ही अन्य धार्मिक और सनातन संस्कृति से जुड़ी पौराणिक कथाएं पढ़ने के लिए हमें फॉलो करना ना भूलें।
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