महान नीतिज्ञ विदुर के बारे में
भारत देश के गौरवशाली इतिहास में हर्षवर्धन, बाणभट्ट, भर्तृहरि, चाणक्य, मनु, महर्षि अंगिरा, शुक्राचार्य जैसे कई लोकप्रिय नीतिज्ञ हुए हैं। जिनमें से एक महाभारत काल के महान् नीतिज्ञ विदुर भी थे। जिनकी धर्म संबंधी सिद्धांतों और नीतियों पर आधारित विदुर नीति आज भी प्रचलित है।
महात्मा विदुर एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ हस्तिनापुर नरेश के प्रमुख सलाहकार भी थे। हालांकि विदुर एक दासी पुत्र थे, लेकिन अपनी बुद्धिमत्ता के चलते उन्होंने सदैव हस्तिनापुर के महामंत्री पद को गौरांवित किया। ऐसे में जब हम महाभारत के प्रमुख पात्रों के बारे में पढ़ रहे हैं, तो महात्मा विदुर के बारे में जानना हमारे लिए अति आवश्यक हो जाता है।
विदुर का संक्षिप्त परिचय
नाम | विदुर |
जन्म स्थान | हस्तिनापुर |
लोकप्रियता | राजनीतिज्ञ, धर्म ज्ञाता, सलाहकार, नीतिवान हस्तिनापुर के महामंत्री |
पिता का नाम | महर्षि वेदव्यास |
माता का नाम | दासी पुत्र |
भाई | महाराज धृतराष्ट्र और पांडु |
उपाधि | कौरवों और पांडवों के काका श्री |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
जीवनसाथी | पारसंवी |
रचना | विदुर नीति |
अवतार | धर्मराज का अवतार |
पिछला जन्म | मृत्यु के देवता यमराज |
मृत्यु | भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र में समाहित, पांडव युधिष्ठिर में समाहित |
महात्मा विदुर का जन्म कैसे हुआ? – Vidur’s Birth
जैसा कि पिछले लेख में हमने आपको बताया था। कि हस्तिनापुर महाराज शांतनु और माता सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की दो पत्नियां थीं। जिनका नाम क्रमशः अंबिका और अंबलिका था। राजकुमार विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद उनकी पत्नियों को महर्षि वेदव्यास के आशीर्वाद से दो पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।
जिन्हें हम महाराज धृतराष्ट्र और पांडु के नाम से जानते है। कहते है इसी दौरान महर्षि वेदव्यास के रूप को देखकर जब दोनों रानियां घबरा गई थी। तो उन्होंने एक दासी को महर्षि वेदव्यास के निकट भेज दिया था। जिनके आशीर्वाद से उस दासी को भी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी।
जोकि महात्मा विदुर के नाम से जाना गया। महर्षि वेदव्यास के अनुसार, दासी की कोख से जन्मा यह बालक आगे चलकर नीतिवान और धर्म ज्ञाता के तौर पर जाना गया। किन्तु दासी पुत्र होने के कारण उन्हें हस्तिनापुर का राजसिंहासन प्राप्त नहीं हुआ।
इस प्रकार, महात्मा विदुर महाराज धृतराष्ट्र और पांडु के अनुज भाई तो थे ही। साथ ही वह समस्त पांडु पुत्र और कौरव भाइयों के काका श्री भी थे। महात्मा विदुर की पत्नी का नाम पारसंवी था। जोकि भगवान श्री कृष्ण की परम भक्त थी।
महात्मा विदुर किसका अवतार थे?
विदुर शब्द संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुआ है। जिसमें विद् धातु विद्यमान है, जिसका अर्थ है ज्ञानवान, ज्ञानी और विद्वान आदि होना। इसके अतिरिक्त, महात्मा विदुर को धर्मराज का अवतार भी माना गया है। कहते है कि इसके पीछे एक धार्मिक कथा है।
प्राचीन समय में, मांडव्य नाम के एक ऋषि थे। जिन्हें राजा ने भूलवश चोरी के इल्जाम में फांसी पर लटका दिया था। जिसपर ऋषि मांडव्य ने यमराज से जाकर पूछा कि उन्हें किस गलती की सजा मिली है। जिसपर यमराज ने उनसे कहा कि आपने 12 वर्ष की उम्र में एक फतींगे की पूंछ में सींक घुसा दी थी।
जिसके उपरांत आपको यह सजा मिली है। ऋषि मांडव्य ने जब यमराज के मुख से यह बात सुनी तो उन्हें क्रोध आ गया। और उन्होंने यमराज को कहा कि इतने कम आयु के बालक को धर्म और अधर्म का कोई ज्ञान नहीं होता है।
इसलिए मैं तुम्हें यह श्राप देता हूं कि शुद्र योनि में तुम एक दास पुत्र के रूप में जन्म लोगे। कहते है इसी के चलते महाभारत युग में, मृत्यु के देवता यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया था।
महात्मा विदुर थे पांडवों के हितैषी
महाराज पाण्डु की मृत्यु के बाद जब महाराज धृतराष्ट्र को हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी घोषित किया गया। तब महाराज धृतराष्ट्र ने पुत्र मोह के वश में पांडु पुत्रों के साथ बहुत अन्याय किया। महात्मा विदुर ने इसलिए सदैव ही उनका और उनके पुत्र दुर्योधन का विरोध किया।
उन्होंने महाभारत युद्ध के शुरू होने से पहले तक महाराज धृतराष्ट्र को पांडवों का अधिकार वापस लौटाने की बात कही। लेकिन हस्तिनापुर के महामंत्री होने के कारण महाराज धृतराष्ट्र की आज्ञा मनाने के लिए वह बाध्य थे। फिर भी उन्होंने सदैव पांडवों का ही साथ दिया।
ऐसे में महात्मा विदुर की वजह से ही पांडव भाई लाक्षा गृह में कौरवों के षडयंत्र से खुद को बचा पाए थे। और जब महाराज धृतराष्ट्र की आंखों के सामने द्रौपदी चीरहरण हो रहा था। तब इकलौते विदुर ही ऐसे व्यक्ति थे। जिन्होंने सामने आकर कौरवों के इस कृत्य का विरोध किया था।
महाभारत काल में कई ऐसे मौके आए, जब विदुर ने हस्तिनापुर और पांडु पुत्रों के प्रति अपनी निष्ठा का परिचय दिया। क्योंकि महात्मा विदुर धर्मराज का अवतार होने के चलते कभी अधर्म का साथ नहीं दे सकते थे।
लेकिन विदुर के मुख से सदैव पांडवों की प्रशंसा सुनने के कारण महाराज धृतराष्ट्र ने विदुर को राज्य से निकल जाने को कह दिया था। हालांकि बाद में महाराज धृतराष्ट्र ने इसे अपनी भूल समझकर विदुर को वापस बुला लिया था।
कहा जाता है कि महाराज पांडु को भी राजा बनाने का सुझाव गंगापुत्र भीष्म को विदुर ने ही दिया था। इस प्रकार, विदुर ने सदैव ही हस्तिनापुर के हित में कार्य और नीतियों का प्रचार प्रसार किया। हालांकि महाभारत के युद्ध के दौरान उन्होंने अपना कोई भी पक्ष नहीं चुना था।
क्योंकि विदुर तो युद्ध ही नहीं चाहते थे। ऐसे में कौरवों या पांडवों का साथ देने से कहीं अधिक सरल उन्हें महामंत्री पद से त्यागपत्र देना लगा। और वह युद्ध की परिस्थितियों में बिना किसी का साथ दिए अपने घर वापस लौट गए। इस दौरान वह पांडवों की माता कुंती को भी अपने साथ अपने घर ले गए थे।
महात्मा विदुर और भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा रहस्य
भगवान श्री कृष्ण यह भली भांति जानते थे कि विदुर के पास अर्जुन के गांडीव से अधिक शक्तिशाली शस्त्र है। हालांकि जब विदुर ने महाभारत युद्ध किसी की भी ओर से ना लड़ने की घोषणा कर दी थी। तब भगवान श्री कृष्ण पांडवों की ओर से निश्चिंत हो गए थे।
साथ ही महाभारत युद्ध से पहलेभगवान श्री कृष्ण जब महाराज धृतराष्ट्र के पास पांडवों के शांतिदूत बनकर गए थे। तब दुर्योधन के असभ्य व्यवहार के चलते उन्होंने हस्तिनापुर का अतिथि सत्कार त्यागकर विदुर के घर भोज किया था। इस दौरान विदुर की पत्नी पारसंवी के कृष्ण को केले के छिलके खिलाने की कथा सुप्रसिद्ध है।
दूसरा, विदुर ने भगवान श्री कृष्ण को अपनी अंतिम इच्छा बताई थी। विदुर की अंतिम इच्छा के अनुसार, वह महाभारत के युद्ध से इतना प्रभावित हो गए थे। कि वह मृत्यु के बाद अपने शरीर के एक अंश को भी धरती पर छोड़ना नहीं चाहते थे। जिसके चलते उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से वह विनती की।
वह उनकी मृत्यु के बाद उन्हें अपने सुदर्शन चक्र में स्थान दे दें। भगवान श्री कृष्ण ने महात्मा विदुर की अंतिम इच्छा का मान रखते हुए विदुर की मृत्यु के बाद उनके शव को अपने सुदर्शन चक्र में परिवर्तित कर लिया।
विदुर ने कैसे त्यागे अपने प्राण इधर जब महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय हुई। तब उधर विदुर सम्पूर्ण तीर्थ स्थानों की यात्रा करके हस्तिनापुर लौट आए। इसके बाद वह महाराज धृतराष्ट्र और माता गांधारी को लेकर वन की ओर चले गए।
जहां उन्होंने कुछ समय पश्चात् ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हुए अपने प्राणों को त्याग दिया। उस दौरान जब विदुर ने अपना शरीर त्यागा, तब वह युधिष्ठिर के शरीर में समा गए थे। क्योंकि स्वयं युधिष्ठिर भी धर्मराज का ही रूप थे। इस प्रकार, महाभारत काल के महान् नीतिज्ञ विदुर सदैव के लिए हस्तिनापुर के इतिहास में अमर हो गए।
विदुर नीति क्या है? – Vidur Neeti
महात्मा विदुर द्वारा कथितविदुर नीति में मानव कल्याण से जुड़ी नीतियों का जिक्र किया गया है। यह महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में ” उद्योग पर्व ” के नाम से विख्यात है। महाभारत काल के दौरान महात्मा विदुर और महाराज धृतराष्ट्र के बीच का संवाद विदुर नीति कहलाती है।
जहां महाभारत युद्ध से पहले महाराज धृतराष्ट्र विदुर से युद्ध के परिणाम संबंधी बिंदुओं पर चर्चा करते हैं। इस दौरान महात्मा विदुर ने महाराज धृतराष्ट्र को निम्न प्रकार की नीतिपरक बातों का ज्ञान दिया था-
- महात्मा विदुर के अनुसार, वह धन त्यागने योग्य है। जिसे अर्जित करने में धर्म का उल्लघंन करना पड़े, क्लेश हो या फिर शत्रु के आगे सर झुकना पड़े।
- व्यक्ति के मन में यदि काम, लोभ और क्रोध की उपस्थिति है, तो वह पराई स्त्री को छूने में, दूसरे का धन का हरण करने में और मित्रों का त्याग करने से कभी पीछे नहीं हटता है।
- किसी भी व्यक्ति पर आवश्यकता से अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए। विश्वास से उत्पन्न भय मूल उद्देश्य का नाश कर देता है।
- सद्गुण पंडित के लक्षण हैं – अच्छे कार्यों को करना, बुरे कार्यों का त्याग करना, ईश्वर पर भरोसा रखना और श्रद्धालु होना।
- संसार में ज्ञानी व्यक्ति वहीं है, जो अपना आदर सम्मान होने पर भी अत्यधिक खुशी और अपमान होने पर अधिक क्रोध नहीं व्यक्त करता है।
