पांडव नकुल के बारे में….. [About Nakul]
महाभारत के पात्रों की श्रृंखला में आज हम पांडव नकुल के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालेंगे। जोकि पांडव सहदेव के ज्येष्ठ और बाकी समस्त पांडवों के अनुज भाई थे। इनकी सुन्दरता की तुलना स्वयं कामदेव से की गई है।
साथ ही नकुल घुड़सवारी और पशु शल्य चिकित्सा में भी निपुण थे। ऐसे में आज हम पांडव नकुल के जीवन के बारे में विस्तार से जानेंगे।
नकुल का संक्षिप्त परिचय
नाम | नकुल |
पिता का नाम | पांडु |
माता का नाम | माद्री और कुंती |
जन्म स्थान | हस्तिनापुर |
निपुण | घुड़सवारी, पशु शल्य चिकित्सा, रूपवान, गुणवान, तलवारबाजी |
व्यक्तित्व | कामदेव के समान सुन्दर |
जन्म | अश्विन देवता के आशीर्वाद से |
गुरु | द्रोणाचार्य |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
पत्नी का नाम | द्रौपदी, करेणुमती |
संतान | नीरमित्र और शतानीक |
भाई | युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, सहदेव |
मृत्यु | सुन्दरता पर घमंड के कारण |
हिन्दुओं के 33वें देवता के आशीर्वाद से जन्मे थे नकुल – Nakul’s Birth
उल्लेखित है कि हस्तिनापुर नरेश महाराज पांडु की दो पत्नियां थीं। जिनका नाम कुंती और माद्री थी। रानी माद्री ने दो जुड़वा पांडवों यानि नकुल और सहदेव को जन्म दिया था। जिनमें से पांडव नकुल दैवीय चिकित्सक अश्विन देवता के आशीर्वाद से जन्मे थे।
माद्री पुत्र होने की वजह से नकुल का संबंध भगवान श्री राम के परिवार से भी था, क्योंकि माद्री का मायका रघुकुल हुआ करता था। दूसरा, नकुल शब्द से आशय प्रेम, बुद्धिमान और सुन्दरता से होता है। नकुल कामदेव के समान रूपवान और गुणवान भी थे।
इन्होंने समस्त पांडव भाइयों की भांति गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में रहकर ही अस्त्र शस्त्र, घुड़सवारी और तलवारबाजी का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। इनके विषय में कहा जाता है कि यह बारिश में बिना जल को छुए घुड़सवारी कर सकते हैं।
ऐसे में इन्होंने अपने अज्ञातवास के दिनों को राजा विराट की नगरी में एक घुड़सवार बनकर व्यतीत किया था। इनका विवाह द्रौपदी के अतिरिक्त चेदिराज की कन्या करेणुमती से हुआ था। इनके दो पुत्र थे। जिनका नाम क्रमशः नीरमित्र और शतानीक था।
नकुल, कर्ण और कर्ण पुत्र वृषसेन के बीच हुआ था घमासान युद्ध
महाभारत के युद्ध के दौरान जब पांडव नकुल का सामना सूर्य पुत्र कर्ण से होता है। तब वह दोनों एक दूसरे पर बाणों की वर्षा करने लगते हैं। इस दौरान नकुल अपने विषधर सांपों के समान अस्सी बाणों वाले तीर कर्ण की ओर चलाते हैं। जिसके जवाब में कर्ण तीस बाण वाले तीर से नकुल को घायल कर देते हैं।
युद्ध के समय नकुल कर्ण से कहते हैं कि हे ! सूत पुत्र। यह युद्ध तेरे ही कर्मों के कारण हुआ है। ना तुम दुर्योधन को पांडवों के खिलाफ भड़काते और ना उसके गलत कार्यों में उसका साथ देते। जिस पर कर्ण नकुल को उसके घमंड को चूर चूर करने की बात कहता है।
इस प्रकार, महाभारत के युद्ध में कर्ण और नकुल के आमने सामने होने पर ऐसा प्रतीत हो रहा था। मानो वह एक दूसरे के प्राण लेने पर उतारू हो। कर्ण और नकुल द्वारा युद्ध भूमि में जिन बाणों का इस्तेमाल किया जा रहा था, उनसे चारों दिशाओं में भारी गर्जना हो रही थी।
वह दोनों ही अपने अपने पक्ष की ओर से युद्ध में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे थे। दूसरी ओर, पांडव नकुल का युद्ध कर्ण के बेटे वृषसेन से भी हुआ था। जिसमें वृषसेन द्वारा नकुल को करारी शिकस्त दी जा रही थीं। जिस पर नकुल ने गांडीवधारी अर्जुन की सहायता से वृषसेन को युद्ध भूमि में पराजित किया था।
जानकारी के लिए बता दें कि पांडव नकुल का सूर्य पुत्र कर्ण और वृषसेन से युद्ध का जिक्र पवित्र ग्रंथ महाभारत के 24वें और 84वें अध्याय में किया गया है।
नकुल को मरने के उपरांत नहीं मिला स्वर्ग, जानिए कारण
नकुल अश्विन देवता के आशीर्वाद से उत्पन्न हुए थे। ऐसे में वह रूपवान और गुणवान थे। इसके साथ ही उन्होंने धर्म, नीति और शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में महारथ हासिल की थीं। जिसके परिणामस्वरुप उन्हें अपने रूपवान होने पर घमंड हो गया था।
कहते है कि महाभारत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् जब पांडव भाई हिमालय की ओर जा रहे थे। तभी रास्ते में नकुल और सहदेव की मृत्यु हो गई थी। जिसके पीछे का कारण नकुल का अपनी सुन्दरता पर घमंड करना बताया गया है।
ऐसे में माना जाता है कि मृत्यु के बाद पांडव नकुल को अभिमान के चलते स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हुई।
इस प्रकार, युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन की भांति नकुल और सहदेव भी एक श्रेष्ठ योद्धा थे। जिन्होंने जीवनपर्यंत अपने क्षत्रिय धर्म का बखूबी पालन किया।
