Sahadev in Mahabharat Hindi
महाभारत पात्रों की श्रृंखला में आज हम पांडव सहदेव के बारे में जानेंगे। सहदेव समस्त पांडव भाइयों में सबसे अनुज थे। साथ ही वह माता कुंती के प्रिय पुत्रों में से एक थे। महाभारत के युद्ध के दौरान पांडव सहदेव ने ही गांधार के राजकुमार शकुनि का वध किया था।
इनके विषय में कहा जाता है कि इन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद उनके शरीर का मांस खाया था। जिसके चलते सहदेव आगे चलकर त्रिकालज्ञ कहलाए गए। ऐसे में चलिए जानते हैं…सहदेव के जीवन से जुड़े रहस्यों के बारे में।
सहदेव का संक्षिप्त परिचय
नाम | सहदेव |
जन्म स्थान | हस्तिनापुर |
पिता का नाम | महाराज पांडु |
माता का नाम | माद्री और कुंती |
जन्म | अश्विन देवता के आशीर्वाद से |
भाई | युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल |
प्रिय पुत्र | माता कुंती |
गुरु | द्रोणाचार्य |
निपुण | वेदों और पुराणों के ज्ञाता, ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान, पशुपालन शास्त्र का अध्ययन |
उपाधि | त्रिकालज्ञ |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
जीवनसाथी | द्रौपदी, विजया, भानुमति, जरासंध की कन्या |
संतान | सुहोत्र, श्रुतकर्मा, सोमक |
राज्यकाल | समुन्द्र तटवर्ती इलाके |
महाभारत युद्ध | शकुनि का वध, शकुनि के पुत्रों का वध |
ग्रंथ | अग्निस्त्रोत, शकुन परीक्षा, व्याधिसंधविमर्दन |
मृत्यु | बुद्धिमत्ता पर घमंड |
सहदेव के जन्म के बारे में – Sahadeva Birth
हस्तिनापुर नरेश पांडु की पत्नी माद्री को अश्विन देवता के आशीर्वाद से दो जुड़वा संतानों की प्राप्ति हुई थी। जिनका नाम क्रमशः नकुल और सहदेव था। जिनमें से सहदेव पांचों पांडु पुत्रों में सबसे छोटे थे। इसलिए सभी लोग उन्हें बहुत प्रेम किया करते थे। सहदेव ने अपने पिता पांडु की मृत्यु के बाद उनके मस्तिष्क के तीन टुकड़े खाए थे।
जिनमें से पहला टुकड़ा खाकर सहदेव को इतिहास का, दूसरा टुकड़ा खाकर वर्तमान का और तीसरा टुकड़ा खाकर उन्हें भविष्य का बोध हो गया था। इसी के चलते सहदेव को महाभारत युद्ध का परिणाम भी पहले से ही मालूम चल गया था।
लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने सहदेव से कहा था कि यदि वह युद्ध के परिणाम के बारे में किसी को कुछ बताएंगे। तो तत्काल ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। जिसके कारण सहदेव सब कुछ जानते हुए भी चुप रहे।
सहदेव की युवावस्था
सहदेव त्रिकालदर्शी होने के अलावा अपने पिता की तरह ज्ञानी भी थे। इन्होंने गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में रहकर ही अस्त्र शस्त्र आदि का ज्ञान प्राप्त किया था। इसके साथ ही सहदेव ने ज्योतिष और पशुपालन शास्त्र का भी अध्ययन किया था।
जिसके परिणामस्वरूप, सहदेव ने अज्ञातवास के दौरान विराट नगरी में पशुपालन और गौ माता की सेवा का कार्य बखूबी किया। सहदेव का विवाह द्रौपदी के अतिरिक्त विजया, भानुमति, जरासंध की कन्या से हुआ था। सहदेव के पुत्रों के नाम सुहोत्र, श्रुतकर्मा और सोमक थे।
सहदेव का राज्यकाल
पांडव सहदेव ने अपना राज्यपाठ स्थापित करने के लिए दक्षिण भारत की ओर रुख किया। जहां इन्होंने त्रैपुर और पोर्वेश्वर नामक राजाओं को हराकर समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों में अपनी जीत का परचम लहराया।
साथ ही अपनी सामर्थ्य के आधार पर इन्होंने शूर्पाक, तालाकट, दंडक, समुन्द्र द्वीपवासी, कालमुख, कोलगिरी, ताम्रद्वीप, रामकपर्वत, तिमिंगल, सुरभिपट्टण, निषाद, पुरुषाद आदि राज्यों को अपने अधीन कर लिया था।
सहदेव बना शकुनि की मृत्यु की वजह
महाभारत युद्ध के दौरान कौरव और पांडवों की सेना में एक से बढ़कर एक योद्धा थे। जिनमें से पांडव सहदेव भी अच्छे रथ योद्धा थे। जिनका अश्व रथ तीतर के रंग का था। और जिसपर हंस के चिह्न का ध्वज लहराता था।
महाभारत युद्ध के अंतिम दिन जब लगभग सभी महारथियों का वध पांडवों के हाथों हो चुका था। उसी दिन पांडव सहदेव ने गांधार राजकुमार शकुनि का वध कर दिया था। इससे पहले भी गांधार राजकुमार शकुनि के पुत्रों की मृत्यु भी पांडव सहदेव के हाथों हुई थी। इस प्रकार, सहदेव ने भी महाभारत के युद्ध में एक क्षत्रिय की भांति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
सहदेव की मृत्यु कैसे हुई – Sahadeva Death
पिछले लेख के आधार पर आपको ज्ञात हो चुका होगा कि युद्ध के बाद जब पांडव पुत्र हिमालय की ओर जा रहे थे। कि तभी रास्ते में नकुल और सहदेव की मृत्यु हो गई थीं। माना जाता है कि सहदेव को अपने बुद्धिमान और त्रिकालदर्शी होने पर सदैव से ही गर्व था। और अंत में इसी घमंड के चलते सहदेव की मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय सहदेव की उम्र लगभग 105 वर्ष बताई गई है।
इसके अतिरिक्त, हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ महाभारत में सहदेव के जीवन से जुड़े तीन ग्रंथ प्राप्त होते हैं। जिनके नाम व्याधिसंधविमर्दन, अग्निस्त्रोत और शकुन परीक्षा है।
