About Teacher- गुरु एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है अंधकार और तमस का अंत करके प्रकाश प्रदान करने वाला। हर वो व्यक्ति, वस्तु तथा परिस्थिति जो हमें किसी प्रकार की शिक्षा प्राप्त कराए वह गुरु का स्थान दिए जाने योग्य है। इसी कारण से जीवन ज्ञान प्रदान करने वाले गुरु के सम्मान में संत कबीर लिखते हैं,
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े,
काके लागूँ पाए,
बलिहारी गुरु आपने,
गोविंद दियो बताए।।”
गुरु के प्रसन्न होने पर उनके आशीर्वाद से जीवन तर जाते हैं और गुरु के तिरस्कार से विशाल साम्राज्य भी स्वाहा हो जाते हैं, जिस प्रकार आचार्य चाणक्य का अपमान कर धनानंद ने अपना सब कुछ नष्ट पाया। जीवन के व्यवहारिक ज्ञान की पहचान गुरु ही अपने शिष्य को कराता है जीवन की विभिन्न परिस्थतियों में जीने की कला गुरु से ही सीखी जा सकती है। इस लेख में हम प्रतिभावान कवियों की गुरु भक्ति दर्शाने वाली विविध कविताओं का वर्णन करेंगे।
विषय सूची
गुरु हैं सकल गुणों की खान- कोदूराम दलित
गुरु, पितु, मातु, सुजन, भगवान,
ये पाँचों हैं पूज्य महान।
गुरु का है सर्वोच्च स्थान,
गुरु है सकल गुणों की खान।
कर अज्ञान तिमिर का नाश,
दिखलाता यह ज्ञान-प्रकाश।
रखता गुरु को सदा प्रसन्न,
बनता वही देश सम्पन्न।
कबिरा, तुलसी, संत-गुसाईं,
सबने गुरु की महिमा गाई।
बड़ा चतुर है यह कारीगर,
गढ़ता गाँधी और जवाहर।
आया पावन पाँच-सितम्बर,
श्रद्धापूर्वक हम सब मिलकर।
गुरु की महिमा गावें आज,
शिक्षक-दिवस मनावें आज।
एकलव्य-आरुणि की नाईं,
गुरु के शिष्य बने हम भाई।
देता है गुरु विद्या-दान,
करें सदा इसका सम्मान।
अन्न-वस्त्र-धन दें भरपूर,
गुरु के कष्ट करें हम दूर।
मिल-जुलकर हम शिष्य-सुजान,
करें राष्ट्र का नवनिर्माण।
कोदूराम दलित- कोदूराम दलित का जन्म सन् 1910 में जिला दुर्ग के टिकरी गांव में हुआ था।यह कविता उन्होंने 5 सितंबर को मनाए जाने वाले शिक्षक दिवस के उपलक्ष में लिखी है, तथा कविता के माध्यम से सभी शिक्षकों को सम्मानित किया है। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियों का प्रयोग बड़े स्वाभाविक और सुन्दर तरीके से हुआ करता था।
शिक्षक- तरुणा खुराना
आदर्शों की मिसाल बनकर
बाल जीवन संवारता शिक्षक,
सदाबहार फूल-सा खिलकर
महकता और महकाता शिक्षक,
नित नए प्रेरक आयाम लेकर
हर पल भव्य बनाता शिक्षक,
संचित ज्ञान का धन हमें देकर
खुशियां खूब मनाता शिक्षक,
पाप व लालच से डरने की
धर्मीय सीख सिखाता शिक्षक,
देश के लिए मर मिटने की
बलिदानी राह दिखाता शिक्षक,
प्रकाशपुंज का आधार बनकर
कर्तव्य अपना निभाता शिक्षक,
प्रेम सरिता की बनकर धारा
नैया पार लगाता शिक्षक।
तरुणा खुराना– इस कविता में कवयित्री एक शिक्षक के हर कर्त्तव्य का परिचय देतीं हैं और यह बतातीं हैं कि किस प्रकार एक शिक्षक अपने शिष्यों को विभिन्न संस्कार प्रदान करते हैं।
गुरु की वाणी- सुजाता मिश्रा
गुरु आपकी ये अमृत वाणी
हमेशा मुझको याद रहे
जो अच्छा है जो बुरा है
उसकी हम पहचान करें
मार्ग मिले चाहे जैसा भी
उसका हम सम्मान करें
दीप जले या अंगारे हों
पाठ तुम्हारा याद रहे
अच्छाई और बुराई का
जब भी हम चुनाव करें
गुरु आपकी ये अमृत वाणी
हमेशा मुझको याद रहे
सुजाता मिश्रा- कविता में कवयित्री गुरु के दिए ज्ञान को जीवन में सदैव याद रखने तथा उपयोग करने की इच्छा का वर्णन करती हैं। इस कविता से शिक्षकों का मार्गदर्शन पाकर जीवन में आने वाली अड़चनों एवं परिस्थितियों का सामना करने तथा उनके उपदेशों को सदैव याद रखने की शिक्षा मिलती है।
गुरु को प्रणाम है- सुरेश कुमार शुक्ल ‘संदेश’
कण-कण में समान चेतन स्वरूप बसा,
एकमात्र सत्य रूप दिव्य अभिराम है।
जीवन का पथ जो दिखाता तम-तोम मध्य,
लक्ष्य की कराता पहचान शिवधाम है।
धर्म समझाता कर्म-प्रेरणा जगाता और
प्रेम का पढ़ाता पाठ नित्य अविराम है।
जग से वियोग योग ईश्वर से करवाता
ऐसे शिवरूप सन्त गुरु को प्रणाम है।
जड़ता मिटाता चित्त चेतन बनाता और
शान्ति की सुधा को बरसाता चला जाता है।
तमकूप से निकाल मन को सम्हाल गुरु
ज्ञान रश्मियों से नहलाता चला जाता है।
पग-पग पर करता है सावधान नित्य
पन्थ सत्य का ही दिखलाता चला जाता है।
आता है अचानक ही जीवन में घटना-सा
दिव्य ज्योति उर की जगाता चला जाता है।
भंग करता है अन्धकार का अनन्त रूप
ज्ञान गंग धार से सुपावन बनाता है।
स्वार्थ सिद्धियों से दूर परमार्थ का स्वरूप
लोकहित जीवन को अपने तपाता है।
दूर करता है ढूँढ़-ढूँढ के विकार सभी
पावन प्रदीप गुरु मन में जगाता है।
तत्व का महत्व समझाता अपनत्व सत्व
दिव्य आत्मतत्व से एकत्व करवाता है।
जिनके पदाम्बुजों के कृपा मकरन्द बिना
मंभ्रिंग मत्त हो न भव भूल पाता है।
काम क्रोध लोभ मोह छल छद्म द्वेष दम्भ
जगत प्रपंच नहीं रंच विसराता है।
पाता नहीं नेक सुख जग देख मन्दिर में,
दुःख पर दुःख स्वयं जाता उपजाता है।
गुरु बिना ज्ञान कहाँ, ज्ञान बिना राम कहाँ,
राम बिना जीवन सकाम रह जाता है।
अभिमान सैकताद्रि होता नहीं ध्वस्त और
मान अपमान सुख, दुख को मिटाता कौन?
युग-युग से भरा हुआ था द्वेष भाव पुष्ट
तन-मन से निकाल उसको भगाता कौन?
कागदेश में फँसा था मन हंस पन्थ भूल,
दिव्य मानसर तक उसे पहुँचाता कौन?
गुरुबिन कौन पुण्य पाप समझाता यहाँ
जीवन के बुझते प्रदीप को जगाता कौन?
सुरेश कुमार शुक्ल ‘संदेश’- कवि अपनी कविता के माध्यम से गुरुओं की दिव्यता का बोध कराते हुए शिष्यों के प्रति उनके उपहारों का विस्तार से वर्णन करते हैं। कवि अपने लेख में ज्ञान की ज्योति प्रदान करने के लिए शिक्षकों को कोटि-कोटि नमन करते हैं और यह दर्शाते हैं कि गुरु की कृपा का अभाव रहते हुए कोई महान नहीं बन सकता। यह काव्य शिक्षकों की महानता एवं उदारता का स्मरण कराता है और शिक्षकों के प्रति शिष्यों के हृदय में सम्मान का बखान करता है।
प्रस्तुत संचयन में गुरु-संबंधी काव्य-रूपों और आधुनिक संदर्भ में शिक्षक-संबंधी कविताओं का संग्रह किया गया है। उल्लेख में सम्मिलित कविताओं में गुरु के महत्व को बड़े ही प्रेम और सम्मान सहित दर्शाया गया है।
यहां भी पढ़ें:
- देश भक्ति कवितायेँ | Patriotic Poems in Hindi
- माँ पर कविताएँ | Poems on Mother in Hindi
- Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi
- प्रकृति पर कविता – Hindi Poems on Nature
- Motivational Poems in Hindi – प्रेरणादायक कविताएं
- Motivational Shayari in Hindi – प्रेरणादायक शायरी हिंदी में
- प्रेरणादायक कहानियाँ – Motivational Stories in Hindi