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जल का महत्व
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में जल को वह मौलिक पदार्थ माना गया है जिससे ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है। जल प्रकृति के पाँच मूल तत्वों में सर्वोच्च स्थान रखता है, जिन्हें पंचमहाभूत कहा जाता है। वेदों द्वारा जल को दिव्य माना गया है। साथ ही जल को शान्ति, सुख, धन, लंबी आयु तथा स्वास्थ्य प्रदान करने वाला माना गया है।
विश्व की सभी पौराणिक सभ्यताएँ जल के स्त्रोतों के निकट ही प्रारंभ हुई थीं क्योंकि जीवन व्यापन के लिए पानी अत्यंत आवश्यक है, इसके अभाव में ना तो मनुष्य, ना ही कोई और जीव जीवित रह सकता है।जल के बिना कभी जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
आधुनिक काल में बढ़ते उद्योग तथा उनके कारखानों में उपयोग किए जाने वाले पानी की मात्रा दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जाता रही है अर्थात सभी उद्योग किसी ना किसी तरीके से पानी पर ही आधारित है। जल के बिना कृषि जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जल बिना अन्न की उत्पत्ति नहीं हो सकती, यहाँ तक कि प्रकृति का अस्तित्व ही नहीं हो सकता।
आज के युग में पेयजल के बढ़ते अभाव का कारण
बाल्यावस्था से हम यह पढ़ते और सुनते आए हैं कि पृथ्वी का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा जल से ढँका है। परंतु फिर भी आज जीवों को पेय जल की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
प्रदूषण पर निबंध
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि पिछले कुछ दशकों में मनुष्यों ने पेयजल के बहुत से स्त्रोतों को प्रदूषित कर दिया है। साथ ही मानवीय जीवन को तथाकथित असान बनाने वाली प्रक्रियाओं ने प्राकृतिक तत्वों को इस प्रकार हानि पहुँचाई है जिसके कारण वर्षा की स्थितियों में भारी परिवर्तन आ गया है।
वर्तमान जल संकट के कई कारण हैं, जो वनस्पतियों की पैदावार से लेकर जीवों के स्वास्थ्य तक सभी क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कारणों का वर्णन यहाँ किया गया है:
1. जलवायु परिवर्तन- अप्रत्याशित रूप से, जलवायु परिवर्तन वैश्विक जल संकट के पीछे मुख्य कारणों में से एक है। जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारणों में से एक, वनों की कटाई है जो आस-पास की भूमि पर नकारत्मक प्रभाव डालती है। इससे मिट्टी की गुणवत्ता की क्षति होती है। वहीं दूसरी ओर, समुद्र का बढ़ता स्तर मीठे पानी के स्रोतों को खारा कर रहा है, जिसका सीधा अर्थ है कि वे अब ग्रहण करने योग्य नहीं हैं।
2. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2001 और 2018 के बीच सभी प्राकृतिक आपदाओं में से लगभग 75% पानी से संबंधित थीं। इसमें सूखा पड़ना और बाढ़ आना भी शामिल है जो स्वच्छ जल स्रोतों को नष्ट या दूषित कर देते हैं। यह न केवल लोगों को स्वच्छ पेयजल से वंचित करता है, बल्कि डायरिया जैसी जलजनित बीमारियों के खतरे को भी बढ़ावा देता है। जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले वर्षों में ऐसी घटनाओं की आवृत्ति बढ़ने का अनुमान है।
3. दूषित पानी की वैश्विक जल संकट में बहुत बड़ी भूमिका है। ऐसे में कारखानों से निकलने वाले दूषित जल की मात्रा में भी वृद्धि हो रही है। परंतु इस दूषित पानी को दोबारा नदी-नालों में प्रवाहित करने से पूर्व पानी को साफ़ करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली तकनीक का हर जगह उपयोग नहीं किया जाता। जिसके कारण नदियों, नालों, तालाबों, यहाँ तक कि समुद्र के जल की शुद्धता का स्तर गिरता ही जाता रहा है।
पीने वाले पानी का सुरक्षित होना अतिआवश्यक है। रसायन व अन्य दूषक पदार्थ जो जीव-जंतुओं के लिए विषाक्त साबित हो सकते हैं जब पानी के ज़रिए मनुष्य के शरीर में जाते हैं तो हैजा, पेचिश, टाइफाइड और पोलियो सहित दुनिया की कई गंभीर बीमारियों का प्रमुख कारण बनते हैं।
जल संबंधी संकटों से बचने के उपाय
पूरे विश्व को जल के अभाव से मुक्त करने के लिए मनुष्य जाति को जल्द ही कुछ ठोस कदम उठाने होंगे, जिससे प्रकृति को और हानि ना पहुँचे। निम्नलिखित कुछ उपायों को उपयोग में लाया जा सकता है:
1. सतत जल प्रबंधन- जल प्रबंधन संरचना में सुधार सरकारों तथा निजी कंपनियों की प्राथमिकता होनी चाहिए। सौर्य डिसेलिनेशन तथा बेहतर सिंचाई प्रणाली जल शुद्धता नियंत्रित करने के लिए प्रौद्योगिकी के बेहतरीन उदाहरण हैं। यह स्पष्ट रुप से कृषि क्षेत्र पर और अधिक लागू होता है जो वर्तमान में पानी का सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है।
2. वर्षा जल संचयन एवं दूषित जल की रीसाइक्लिंग भी भूजल और अन्य प्राकृतिक जल निकायों में जल की कमी तथा तनाव को नियंत्रित करते हैं। भूजल पुनर्भरण, जो पानी को धरती की सतह से भूजल में जाने की अनुमति दे कर भूजल वृद्धि का कारण बनता है, पानी की कमी को रोकने के लिए एक प्रसिद्ध प्रक्रिया है।
3. प्रदूषण नियंत्रण एवं सीवेज ट्रीटमेंट- उचित स्वच्छता स्तर के बिना, पानी बीमारियों का कारण बनता है तथा ग्रहण करने के योग्य नहीं रह जाता। अतः प्रदूषण पर ध्यान देना, पानी की गुणवत्ता को मापना और उसकी निगरानी करना ज़रूरी है। इसके अलावा, विशिष्ट क्षेत्रों में सीवेज सिस्टम में सुधार पानी की कमी को और संगीन होने से रोकने का एक और तरीका है।
सारांश
इस उल्लेख में हमने जल के महत्व, आज के युग में बढ़ते जल संबंधित संकट एवं उन संकटों से राहत के कुछ उपायों के बारे में जानकारी प्राप्त की। जल संरक्षण के लक्ष्य तक ही हासिल किया जा सकता है जब हर व्यक्ति इसके हेतु अपना योगदान दे। अगर हमने अब भी इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया तो जल्द ही पृथ्वी ओर पीने लायक जल विलुप्त हो जाएगा और उसके साथ ही सभी जीव-जंतु, पेड़ वनस्पतियाँ, एवं संपूर्ण प्रकृति का नाश हो जाएगा।
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