शहीद भगत सिंह पर निबंध | Essay on Bhagat Singh in Hindi

essay on bhagat singh

भगत सिंह का शुरुआती जीवन

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ना जाने कितने ही वीरों ने अपने प्राणों को भारत माता पर न्यौछावर कर दिया था। उन्हीं वीरों में से एक थे भगत सिंह (Bhagat Singh)। सन् 1907 में लायलपुर,  में भगत सिंह ने एक सिख परिवार में जन्म लिया। बाल्यावस्था से ही वे स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देना भारतीय होने के नाते अपना कर्त्तव्य समझते थे।

जलियाँवाला बाग हादसे के बाद उनके भीतर अंग्रेज़ों के लिए नफ़रत और बढ़ गई, इसी गुस्से में उस छोटे बालक ने उस ब्रिटिश सरकारी स्कूल की सारी किताबें जला डालीं जहाँ वे पढ़ने जाया करते थे। शुरुआत में वे गांधी के असहयोग आंदोलन के पूर्ण समर्थन में थे परंतु जब चौरा-चौरी की हिंसक घटना के पश्चात गांधी ने आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया और सभी के लिए पीछे हटने का फरमान जारी किया तब भगत सिंह के स्वतंत्रता का स्वप्न समझो टूटने लगा।

उसी समय उन्होंने स्थान लिया कि अहिंसा के मार्ग पर चलकर भारत कभी स्वतंत्र नहीं हो सकता और स्वतंत्रता हासिल करने के लिए सभी क्रांतिकारियों को एक जुट होकर अंग्रेजों से लड़ना होगा। किताबों में अत्यंत रुचि रखने वाले भगत सिंह ने स्कूल से निकलकर लाहौर नैशनल कॉलेज में दाखिला लिया, और लेनिन को पढ़ने में अपना ज़्यादातर समय देते रहे।

भगत सिंह की विचारधारा

भगत सिंह (Bhagat Singh) का मानना था कि बेहरों को जगाने के लिए धमाके की ज़रूरत होती है। उनकी बस एक ही माँग थी- पूर्ण स्वराज। वे भारत से अंग्रेजों का संपूर्ण अस्तित्व मिटाना चाहते थे। अंग्रेजों के असेंबली हॉल में बम फोड़ने का साहस रखने वाले, देश के लिए अपने प्राणों को कई बार दाव पर लगाने वाले भगत सिंह बाहर से जितने ही हिम्मती और कठोर थे, अंदर से उतने ही कोमल और भावुक भी थे।

जेल में रहने के दौरान उन्हें और बाकी क्रांतिकारियों को अंग्रेज़ी अफ़सरों द्वारा दी गईं बहुत सी यातनाओं का सामना करना पड़ा। परंतु उनका हौसला फिर भी कम नहीं हुआ। वे लेनिन की लिखी किताबें पढ़कर वाम-पंथी विचारों से बहुत प्रभावित हुए, साथ ही वे भगवान उन्हें भगवान के होने पर टानिक भी विश्वास नहीं था।

उन्होंने सुखदेव, राजगुरु, चन्द्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर स्वराज पाने के लिए बहुत योगदान दिए और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की शुरुआत की। क्रांतिकारियों को एक जुट करने के लिए उन्होंने नौजवान भारत सभा की नीव रखी।

स्वतंत्रता संग्राम में भगत सिंह के योगदान

लाला लाजपत राय की एक लाठी चार्ज में लगी चोटों के कारण मृत्यु हो जाने के बाद सभी क्रांतिकारी बहुत दुःखी थे, तभी भगत सिंह ने इस हादसे का प्रतिशोध लेने और उस पुलिस अफसर को जान से मारने की योजना बनाई जिसने लाला लाजपत राय पर हमला किया था, लेकिन भगा-दौड़ी के दौरान गलती से किसी और अफसर को गोली लग गई और उसकी मौत हो गई।

इस घटना के बाद अंग्रेज़ी पुलिस ज़ोरों-शोरों से भगत सिंह के पीछे लग गई पर किसी तरह भगत सिंह वेश बदल कर वहाँ से भाग निकले। इसके बाद साइमन बिल आने पर बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर उन्होंने अपनी बात अंग्रेज़ी सरकार तक पहुँचाने के लिए नैशनल असेंबली में दो धमाके किए जिसमें कोई घायल नहीं हुआ और भगत सिंह सहित दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया।

दत्त और सिंह को आरंभ में अलगाव जेलों में रखा गया, कुछ समय पश्चात दोनों को लाहौर के सेंट्रल जेल में भेज दिया गया। वहाँ हिन्दुस्तानी कैदियों की बेहद बदतर हालत देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ। अंग्रेजों के प्रति उनकी घृणा और उनका क्रोध और बढ़ गया। तब उन्होंने ठान लिया कि भारतीय कैदियों के हालातों को सुधारना उनका प्रथम कर्त्तव्य है।

उन्होंने ब्रिटिश अफसरों के समक्ष अपनी माँगे रखीं लेकिन उनकी माँगों को हँसना कर दिया गया। इस व्यवहार से रुष्ट हो उन्होंने जेल में भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया और कहा कि यह हड़ताल तभी समाप्त की जायेगी जब अंग्रेज़ी सरकार द्वारा हिन्दुस्तानी कैदियों के लिए पर्याप्त राशन, साफ़ सुथरा भोजन, और रहने लायक व्यव्स्था मुहैया करवाई जायेगी। उनके इस फ़ैसले में सभी हिन्दुस्तानी क्रांतिकारी कैदियों ने उनका साथ दिया।

यह हड़ताल 97 दिनों तक चला। जिसके दौरान उन सभी कड़ी यातनाओं का सामना करना पड़ा, अंग्रेज़ी हुकूमत ने अपने अफ़सरों को किसी भी तरह भगत सिंह और बाकी कैदियों के अनशन को खत्म करवाने के सख्त आदेश दिए। प्रतिदिन दो बार अंग्रेज़ी पुलिस आती और सभी कैदियों को तरह-तरह की यंत्रणा देकर उन्हें भोजन ग्रहण करवाने का प्रयास करती।

परंतु एक भी ने भोजन ग्रहण नहीं किया। लेकिन इसी टॉर्चर के चलते 67 दिनों बाद उनके एक साथी जतीन्द्रनाथ दास, का निधन हो गया। इतना होने के बाद भी किसी ने अनशन रोकने की नहीं सोची, और आखिरकार अंग्रेजों को भगत सिंह की माँगों के सामने झुकना ही पड़ा।

भगत सिंह के विचार – Best Bhagat Singh Quotes in Hindi

भगत सिंह की फाँसी

ट्रायल में हंसराज वोहरा, जय गोपाल इत्यादि द्वारा भगत सिंह के ख़िलाफ़ दिए गए बयान के बाद अंग्रेज़ी हुकूमत की ओर से भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को फाँसी की सजा सुना दी गई। फाँसी के लिए जाने से पूर्व वे लेनिन की जीवनी पढ़ते रहे। 23 मार्च 1931 को फाँसी के फंदे पर पहुँचकर तीनों ने उन रस्सियों को चूमा और देश के लिए हस्ते-हस्ते फाँसी पर चढ़ गए और वीरगति को प्राप्त हुए।

जनता में आक्रोश ना हो इसलिए अंग्रेज़ी अफ़सरों ने उन तीनों के शवों के टुकड़े किए और सतलुज नदी में प्रवाहित कर दिए। परंतु जब गाँव वालों को इसका पता चला तो उन्होंने उनका विधिवत दाह संस्कार किया। जेल में भगत सिंह ने कई पत्र लिखे, साथ ही उन्होंने एक किताब भी लिखी जिसका शीर्षक है ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’। उनके उल्लेखों से उनके विचारों और व्यक्तित्व के बारे में बहुत सी जानकारियाँ मिलती हैं। भगत सिंह जैसे वीर बहुत मुश्किल से जन्म लेते हैं, और हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो जाते हैं।

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image source: businesstoday

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