Sacche Mitra par Nibandh
कहते है इस दुनिया में व्यक्ति को सब कुछ मिल सकता है, परन्तु सच्चा और स्वार्थहीन मित्र मिलना बहुत कठिन है। जिस व्यक्ति को इस मित्र की प्राप्ति हो जाए, मानो उसने जीवन में सब कुछ पा लिया हो। ऐसे में जब एक बच्चा मां के आंचल से निकलकर बाहर आता है, तब उसे मित्र की जरूरत होती है। साथ ही यदि कोई व्यक्ति लोगों से मेल जोल बढ़ाता है, तो कई लोगों से उसका परिचय होने लगता है। धीरे धीरे उसकी यह पहचान मित्रता में परिवर्तित हो जाती है।
मित्र शब्द से तात्पर्य
मित्र यानि दो तन एक मन। जहां दो व्यक्ति परस्पर अपने स्वार्थों का त्याग करके एक दूसरे के प्रति समर्पित होते हैं। मनुष्य को प्रारंभ से ही कभी ऐसे व्यक्ति को अपना मित्र नहीं बनाना चाहिए, जो आपसे विचारों में अधिक पक्का हो। साथ ही जो सदैव आपकी हां में हां मिलाए। यह दोनों ही आपके लिए हानिकारक हो सकते है। मनुष्य को हमेशा ऐसे व्यक्ति को अपना मित्र चुनना चाहिए जो ना तो हम पर आदेश चलाता हो और ना हमारा आदेश मानता हो।
सच्चे मित्र की परिभाषा
कि चन्दने सकपुरेरसुहिमे कि चये शीतलेे,
सर्वे ते मित्रगत्राअस्य कलां नाह्रन्ति षोडशीम्।।
अर्थात चंदन, कपूर इत्यादि से क्या लाभ है? क्यूंकि इनमें से किसी में भी मित्र की भांति शीतलता नहीं होती है। मित्र उस अमृत की तरह है जो विपदा और सुख दोनों ही परिस्थितियों में आपका साथ देता है। इतना ही नहीं जो सुख एक बार मित्र के शरीर से स्पर्श होकर प्राप्त होता है, वह तो अमृत भरे सागर से भी नहीं मिलता है।
इस प्रकार एक सच्चा मित्र हमारी सबसे बड़ी ताकत होती है। वह विपत्ति के समय हमारे साथ खड़ा होता है, निराशा में उत्साह भरता है, दोषों से दूर रखता है, और सच्चे साथी की तरह साथ देता है। इसलिए मनुष्य को एक स्वार्थहीन मनुष्य को ही अपने सच्चे मित्र के रूप में स्वीकार करना चाहिए। पुरानी मान्यताओं के अनुसार, किसी व्यक्ति का कोई मित्र जो उसके दुख के समय उसका साथ नहीं देता, उसके तो देखने मात्र से ही पाप लगता है।
इसके विपरित जो व्यक्ति अपने दुखों को आपके दुखों के आगे भूल जाए, वहीं सच्चा मित्र है। साथ ही जो मित्र आपको गलत रास्ते से हटाकर सही रास्ते पर लाता है और आपसी लेनदेन के समय ईमानदारी का परिचय देता है, सदैव आपकी मदद के लिए तैयार रहता है। असल मायनों में वहीं आपका असली मित्र है।
दूसरी ओर जो व्यक्ति आपके समक्ष तो आपके पक्ष में बातें करता है। लेकिन आपके पीठ पीछे वह सभी से आपकी बुराई करता हो। ऐसे मित्र का त्याग कर देना चाहिए। शास्त्रानुसार कपटी मित्र को शूल सम बताया गया है और उसके चित को सांप के समान। इसलिए व्यक्ति को ऐसे शूल और सांप जैसे मित्र बनाने से बचना चाहिए।
इसकी तुलना में जो व्यक्ति शुद्ध हृदय वाला हो, परिश्रमशील, कोमल स्वभाव और सच्चे आत्मबल वाला होता है। वहीं व्यक्ति सच्चे मित्र का एक सही चयन है। आपने प्राचीन इतिहास में मित्रता संबंधी कई कहानियां सुनी होंगी। जिसमें सदैव श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता का परिचय दिया जाता है। जहां श्री कृष्ण द्वारकाधीश होने के बाद भी अपने बचपन के दोस्त सुदामा को नहीं भूले, तो वहीं राजा द्रुपद ने बचपन के मित्र द्रोणाचार्य को उसकी विपदा के समय उसे पहचानने से भी इंकार कर दिया था।
उपसंहार
इस प्रकार हमें जीवन में अपने सच्चे मित्र का चुनाव करते वक़्त सावधान रहना चाहिए। क्यूंकि दुष्ट व्यक्ति की मित्रता सुबह की छाया के समान होती है, जो शुरुआत में प्रभावी और अंत होते होते समाप्त हो जाती है। लेकिन सच्चे व्यक्ति से की गई मित्रता पहले थोड़ी और फिर बाद में बढ़ती जाती है। ऐसे में जो व्यक्ति आपका कल्याण चाहता है, उसे बहुत खोज करने के बाद ही अपनी मित्रता के लिए चुनना चाहिए।
इसके साथ ही हमारा आर्टिकल – Sacche mitra par nibandh समाप्त होता है। आशा करते हैं कि यह आपको पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य कई निबंध पढ़ने के लिए हमारे आर्टिकल – निबंध लेखन को चैक करें।
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1 thought on “सच्चे मित्र पर निबंध – True Friend Essay in Hindi”
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