समाचार पत्र पर निबंध – Essay on Newspaper in Hindi

Samachar Patra par Nibandh

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज के बिना अकेले नहीं रह सकता है। समाज में एक दूसरे से परिचित होने की और उन परिचितों के संबंध में जानने की लालसा उसके मन में सदैव बनी रहती है। ऐसे में आज के वैज्ञानिक युग में जहां सम्पूर्ण विश्व एक समाज बनकर उभरा है तो आज का मनुष्य अपने इस समाज की प्रतिदिन होने वाली गतिविधियों की नित्य जानकारी हासिल करना चाहता है। जिसके लिए समाचार पत्रों का चलन मानव की इसी जिज्ञासा की पूर्ति करने के लिए हुआ है।

ऐसे में हम कह सकते हैं कि नवीन समाचारों को जानने के इच्छुक जन समाचार पत्रों पर ऐसे झपटते है जैसे कोई भूखा व्यक्ति रोटी झपटता है। इसी का परिणाम है कि समाचार पत्रों का प्रचार प्रसार दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। चाहे बात किसी सरकारी परीक्षा की तैयारी हो या राष्ट्रीय खबरों से खुद को जागरूक करने की। हर तरीके से समाचार पत्र लोगों के लिए निष्पक्ष रहता है। वर्तमान डिजिटल युग में समाचार पत्रों का रूप भी डिजिटल हो चला है। अब आप कहीं भी बैठे हुए समाचार पत्रों को मोबाइल के माध्यम से पढ़ सकते हैं।

समाचार पत्र का इतिहास

बात की जाएं समाचार पत्रों के इतिहास की, तो चीन के महान अविष्कारक गुटेनबर्ग द्वारा 15वीं सदी में बनाई गई प्रिटिंग मशीन इसके उद्गम का कारण मानी गई है। इस प्रिंटिंग मशीन के चलन में आने के बाद ही सबसे पहले पुस्तकों, धार्मिक लेखों और पत्रिकाओं को छापा गया।

तत्पश्चात् समाचार पत्रों का दौर शुरू हुआ। यूरोपीय देशों में समाचार पत्र को आरंभ में गजेटा कहा जाता था, जबकि भारत में मुगल काल के दौरान समाचार पत्रों को फरमान और दस्तक कहा गया। जहां से ही अख़बार शब्द प्रचलन में आया था।

वैसे तो भारत में 1774 ईसवी को समाचार पत्र का उद्गम वर्ष माना जाता हैं। जबकि छापाखाने की मशीन भारत में 1674 में आ गई थी। परंतु देश का पहला समाचार पत्र ”बंगाल गजट” साल 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की द्वारा प्रकाशित किया गया।

हालांकि कुछ समय बाद इसके प्रकाशन पर भी रोक लगा दी गई। क्योंकि इसमें ईस्ट इंडिया कंपनी के काले कारनामों को उजागर किया जा रहा था। 

इसके बाद ब्रिटिश गुलामी से भारतीयों को छुटकारा दिलाने के उद्देश्य से हमारे कई सारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अखबार को अपना हथियार बनाया और क्षेत्रीय भाषाओं में समाचार पत्रों का सम्पादन किया जाने लगा। ताकि भारतीय लोग ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एकजुट हों।

दूसरी तरफ, समय-समय पर ब्रिटिश सरकार द्वारा कई समाचार पत्रों के प्रकाशन पर रोक भी लगाई गई और उनको बंद करने हेतु कई सारे प्रेस एक्ट भी लागू किए गए। ताकि भारतीय लोग अपने अधिकारों के प्रति आवाज न उठाने पाएं।

लेकिन समाचार पत्रों के कारण ही आजादी की गूंज जन-जन तक पहुंच पाई। जिनमें कर्मवीर (1924), स्वदेश (1921), स्वतंत्र भारत (1928), स्वराज्य (1931), नवयुग (1932), हरिजन सेवक (1932), संघर्ष (1938), नवज्योति (1938), राष्ट्रीयता (1938), हुंकार (1942) आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा भी अन्य कई समाचार पत्र हुए, जिन्हें स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले के समाचार पत्रों की श्रेणी में रखा गया है।

  • 1818: बंगला भाषा में जेसी मार्शमैन द्वारा दिग्दर्शन नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया गया।

  • 1819: राजा राम मोहन राय द्वारा बंगाली भाषा में संवाद कौमुदी इसी वर्ष में प्रकाशित हुआ था। 

  • 1822: इस वर्ष मुंबईना समाचार नामक दैनिक अखबार शुरू हुआ था। 

  • 1826: इस वर्ष हिंदी भाषा का प्रथम समाचार पत्र उदंत मार्तेंड प्रकाशित हुआ। जिसका सम्पादन जुगल किशोर ने किया था।

  • 1830: राजा राम मोहन राय द्वारा ही हिंदी, अंग्रेजी और फारसी भाषा में बंगदूत समाचार पत्र का सम्पादन किया गया। 

  • 1846: हिंदी भाषा के उन्नत साहित्यकार राजा शिव प्रसाद सितारे हिंद ने इस वर्ष बनारस अखबार नाम से एक समाचार पत्र को प्रकाशित किया था।

  • 1868: मोतीलाल घोष द्वारा प्रकाशित अमृत बाजार पत्रिका का बंगला भाषा में संपादन किया गया था।


समाचार पत्र के प्रकार

समाचार पत्रों को मुख्य रूप से प्रकाशन के आधार पर बांटा गाया गया है।

  1. दैनिक समाचार पत्र – जिन समाचार पत्रों में 24 घंटों में घटित हुई घटनाओं का वर्णन किया जाता है, वह दैनिक समाचार पत्र होते हैं। जिनका प्रकाशन प्रतिदिन किया जाता है।

  2. साप्ताहिक समाचार पत्र – उपरोक्त समाचार पत्रों का प्रकाशन साप्ताहिक तौर पर होता है। इनमें खबरों से अधिक किसी विद्वान व्यक्ति के संबंधित विषय पर विचारों को अधिक प्रधानता दी जाती है।

  3. मासिक समाचार पत्र – इस प्रकार के समाचार पत्रों का प्रकाशन मासिक तौर पर होता है। इनमें मुख्य रूप से लेखों और उपन्यासों को प्रकाशित किया जाता है।

  4. लघु समाचार पत्र – जिन समाचार पत्रों में कम पृष्ठ और मुख्यता स्थानीय खबरों को अधिक महत्व दिया जाता है, वह लघु समाचार पत्र कहलाते हैं। इनका प्रकाशन दैनिक और साप्ताहिक रूप से किया जा सकता है।

  5. त्रैमासिक, अर्द्ध वार्षिक और वार्षिक समाचार पत्र – इस प्रकार के समाचार पत्रों का प्रकाशन प्राय: साहित्यिक विधाओं के मद्देनजर किया जाता है। इस प्रकार के समाचार पत्रों का अधिक प्रचलन नही है, बल्कि वार्षिकी पत्रिकाओं को इनके स्थान पर अधिक प्रयोग में लाया जाता है।

  6. बड़ा समाचार पत्र – इसकी वितरण के उद्देश्य से करीब 50,000 से अधिक प्रतियां छापी जाती हैं।

  7. मध्यम समाचार पत्र – मध्यम समाचार पत्र की वितरण के उद्देश्य से लगभग 15,000 से लेकर 50,000 तक प्रतियां छापी जाती हैं।

  8. छोटा समाचार पत्र – जिन समाचार पत्रों की 15,000 से कम प्रतियां छपती हैं, वह छोटे समाचार पत्र होते हैं।


भारत के कुछ प्रमुख समाचार पत्र (Samachar patra ke naam)

आधुनिक समय में जहां डिजिटल क्रांति हर जगह अपने पांव पसार चुकी है। ऐसे में मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, यह क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रह गया है। जिसके चलते समाचार पत्र अब कागज के अतिरिक्त डिजिटल रूप में भी उपलब्ध हैं। 

वर्तमान समय में कई प्रकार के दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, द्विमासिक, त्रैमासिक, अर्द्ध वार्षिक और वार्षिकी समाचार पत्र अलग अलग भाषाओं में प्रकाशित होते हैं। जिनमें उत्तर भारत में प्रकाशित होने वाले प्रमुख हिन्दी अखबार निम्न हैं-

  • दैनिक जागरण (1947)
  • हिंदुस्तान (1936)
  • नवभारत टाइम्स (1947)
  • दैनिक भास्कर (1958)
  • अमर उजाला (1948)
  • जनसत्ता (1938)
  • देशबंधु (1959)
  • आज (1920)
  • पंजाब केसरी
  • राजस्थान पत्रिका
  • लोकमत
  • नई दुनिया
  • राष्ट्रीय सहारा
  • जननायक
  • दैनिक ट्रिब्यून

बात करें अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्रों की, तो भारत में सर्वाधिक the Hindu, Navbharat Times और Hindustan times पाठकों द्वारा पसंद किया जाता है।


समाचार पत्रों की महत्ता

समाचार पत्रों से समाज को अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। देश विदेश की राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक घटनाओं समेत कई नवीन जानकारियां हमें प्राप्त होती हैं। साथ ही सामाचार पत्र कुरीतियों, धार्मिक अंधविश्वासों, समाज में हो रहे अन्याय को रोकने का सबल साधन हैं। इतना ही नहीं समाचार पत्रों की ताकत के आगे निरंकुश शासक भी घुटने टेक देते हैं।

इसी कारण इसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है। इसके अलावा समाचार पत्र जन जागरण का जरूरी साधन होते हैं जिनके माध्यम से जनता दिशा निर्देश भी प्राप्त करती है। एक बहुत लंबे वक्त से समाज में हो रहे अत्याचार और शोषण के खिलाफ समाचार पत्रों के माध्यम से ही लड़ाई लड़ी गई है। इस प्रकार समाचार पत्र जन भावना को व्यक्त करने के साथ ही समय समय पर जनता की भावनाओं को आंदोलित के करने में सहायक हैं।

समाचार पत्रों के भाग

समय के साथ समाचार पत्रों के स्वरूप में भी काफी परिवर्तन आया है। आज जहां इनके प्रथम पृष्ठ पर देश विदेश के समाचार प्रमुखता से दर्शाए जाते हैं तो वहीं स्थानीय समाचार के लिए अखबार में अलग पृष्ठ होता है। आजकल समाचार पत्रों में नौकरी, शिक्षा और विवाह आदि के विज्ञापन भी होते हैं। साथ ही समाचार पत्रों पर सोना चांदी के भाव भी प्रकाशित होते हैं। इतना ही नहीं अखबारों में अब संपादकीय विचार भी आते है और समय-समय पर अखबारों के साथ विशेषांक भी छपते हैं।

साथ ही सामाजिक रूप से लोगों को जोड़े रखने के लिए विभिन्न मुद्दों पर लेखकों और आम जनता की राय कविताओं व लेख के माध्यम से समाचार पत्रों में छापी जाती हैं। ऐसे में हम कह सकते हैं कि समाचार पत्र को विश्व की गतिविधियों का अधिक से अधिक परिचायक बनाने की चेष्टा रखकर उसे मनोरंजन और जन प्रिय बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए।

उपसंहार

आजकल पैसा कमाने की होड़ में पूंजीपति मालिक उन खबरों को अधिक महत्व देने लगते हैं, जिनसे उन्हें लाभ की प्राप्ति होती है। साथ ही कुछ समाचार पत्र सांप्रदायिक होने के कारण फूट डालते हैं तो वहीं कुछ समाचार पत्र जनता की विचारधारा को संकुचित करके उन्हें गलत मार्ग पर भी अग्रसरित कर देते है, जिससे समाज एक गलत दिशा की ओर बढ़ने लग जाता है। ऐसे में समाचार पत्रों के प्रकाशन के समय जनहित और राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए तभी समाचार पत्र सच्चे अर्थों में समाज में जन जागरण के अग्रदूत कहलाएंगे।


इसके साथ ही हमारा आर्टिकल – Samachar Patra par Nibandh समाप्त होता है। आशा करते हैं कि यह आपको पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य कई निबंध पढ़ने के लिए हमारे आर्टिकल – निबंध लेखन को चैक करें।

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अंशिका जौहरी

मेरा नाम अंशिका जौहरी है और मैंने पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया है। मुझे सामाजिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से लिखना और बोलना पसंद है।

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